“पल-पल रंग बदल रही है दुनिया, और लोग पूछ रहे हैं कि होली कब है।”
यह पंक्ति न केवल व्यंग्य है, बल्कि हमारे समाज का यथार्थ भी दिखाती है। हर क्षण दुनिया बदल रही है—विचार, मूल्य, संबंध, और परिस्थितियाँ लगातार रूप बदल रहे हैं। लेकिन हम इन परिवर्तनों को समझने और उनसे सीखने की बजाय उन्हीं तिथियों और परंपराओं में उलझे रहते हैं, जो हमारी वास्तविक ज़िंदगी से कहीं कम महत्वपूर्ण हैं।
आज हम देखते हैं कि लोग हर बात में अस्थिर हो गए हैं। राजनीति में वादे बदलते हैं, रिश्तों में विश्वास डगमगाता है, विचारधाराएँ हर पल नई शक्ल लेती हैं। किसी दिन एक बात सही लगती है, और अगले ही दिन उसे गलत ठहराया जाता है। सवाल यह है—क्या यह बदलाव विकास की निशानी है, या यह केवल हमारी अस्थिरता का प्रतिबिंब है?
गीता का संदेश: स्थिरता ही शक्ति है
भगवद गीता में भगवान कृष्ण अर्जुन को समझाते हैं—
“स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव।
स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम्॥” (गीता 2.54)
अर्थात, जो व्यक्ति स्थितप्रज्ञ (अडिग बुद्धि वाला) है, वह हर परिस्थिति में समान रहता है। वह न सुख में अत्यधिक प्रसन्न होता है, न दुख में विचलित। लेकिन आज का मनुष्य हर छोटी-बड़ी बात में अपनी राय और आस्थाएँ बदल लेता है। यह अस्थिरता हमें न तो मानसिक शांति देती है और न ही किसी ठोस उपलब्धि तक पहुँचने देती है।
चाणक्य नीति: अस्थिरता दुर्बलता न बने
आचार्य चाणक्य कहते हैं—
“संपत्ति: पुनर् एधति, पुनः पतति जीवितम्।
यच्छ्यते विद्या-रत्नं तेन याति न दूरगम्॥”
अर्थात, धन और जीवन तो आते-जाते रहते हैं, लेकिन जो व्यक्ति ज्ञान और धैर्य के साथ चलता है, वही सच्ची स्थिरता प्राप्त करता है। लेकिन हम देखते हैं कि लोग बिना ठोस आधार के अपने विचार, निर्णय और वादे बदलते रहते हैं। अस्थिरता तब खतरनाक हो जाती है जब यह व्यक्ति के चरित्र का हिस्सा बन जाती है।
कबीर और रहीम की सीख: जो टिके वही महान
कबीर कहते हैं—
“धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय॥”
आजकल लोग हर चीज़ में तुरंत बदलाव चाहते हैं, चाहे वह सफलता हो, संबंध हों या विचारधारा। लेकिन कबीर का संदेश स्पष्ट है—सही समय और धैर्य के बिना कुछ भी स्थायी नहीं हो सकता।
इसी तरह रहीम कहते हैं—
“रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाए॥”
रिश्तों में भी यही अस्थिरता देखने को मिलती है। लोग भावनाओं में बहकर बड़े-बड़े वादे करते हैं, फिर समय बदलते ही अपने ही शब्दों से मुकर जाते हैं। ऐसे में विश्वास की डोर कमजोर हो जाती है, और एक बार टूटने के बाद इसे जोड़ना मुश्किल हो जाता है।
नीरज जी की पंक्तियाँ: परिवर्तन की सही परिभाषा
गोपाल दास नीरज जी लिखते हैं—
“आज बादलों ने फिर साजिश की,
जहाँ मेरा घर था वहीं बारिश की।”
यह पंक्ति उन परिस्थितियों पर कटाक्ष करती है, जहाँ हर बदलाव हमारे लिए नहीं, बल्कि हमारे विरुद्ध लगता है। जब हम बिना सोचे-समझे अपनी नीतियाँ और विचार बदलते हैं, तो कई बार वही परिवर्तन हमारे लिए बाधा बन जाता है।
बॉलीवुड के कई गीत भी इस बदलते समाज को दर्शाते हैं—
“आज मैं ऊपर, आसमाँ नीचे…” (फ़िल्म: ख़ामोशी)
समाज में लोगों का व्यवहार भी इसी तरह अस्थिर हो गया है। जो आज सम्मानित हैं, वे कल उपेक्षित हो सकते हैं। इसी तरह, रिश्तों में भी यह बदलाव दिखता है—
“कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना…” (फ़िल्म: अमर प्रेम)
लोग अपनी सुविधा के अनुसार रिश्ते और विचार बदलते हैं, बिना यह सोचे कि इसका प्रभाव कितना गहरा हो सकता है।
“गुज़र जाएँगे हसीन लम्हे, बस यादें रह जाएँगी,
वक़्त के साथ रंग बदलते हैं, यह दुनिया सिखा जाएगी।”
तो हमें क्या करना चाहिए?
1.स्थिरता और परिवर्तन का संतुलन बनाए रखें – बदलाव आवश्यक है, लेकिन मूल्यों और वचनों पर कायम रहना और भी ज़रूरी है।
2.सोच-समझकर निर्णय लें – किसी भी विचार या ट्रेंड को अपनाने से पहले यह सोचें कि यह कितना स्थायी और तर्कसंगत है।
- रिश्तों में स्थिरता बनाए रखें – बार-बार व्यवहार बदलने से रिश्तों में दरार आ सकती है।
- स्वयं को पहचानें5. अपने मूल विचार और आस्थाओं को जानें, ताकि हर बदलाव आपको बहा न ले जाए।
निष्कर्ष
दुनिया हमेशा बदलती रहेगी, लेकिन हमें यह तय करना होगा कि हम इस बदलाव में स्थिरता का संतुलन बनाए रखते हैं या सिर्फ़ परिस्थितियों के साथ बहते रहते हैं।
तो अगली बार जब दुनिया के रंग बदलते देखें, तो यह मत पूछिए कि ‘होली कब है’, बल्कि यह समझने की कोशिश करें कि आपके जीवन के असली रंग कौन से हैं।
© योगाचार्य नरेन्द्र प्रसाद ‘निराला’